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श्रवण सरल नहीं, बड़ी कला है

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राग, द्वेष, मोह और तृष्णा के कारण धर्म-श्रवण नहीं हो पाता। पूर्वाग्रहों के कारण धर्म-श्रवण नहीं हो पाता। भय के कारण धर्म-श्रवण नहीं हो पाता है। एक दिन कुछ उपासक भगवान के चरणों में धर्म-श्रवण के लिए आए। उन्होंने बड़ी प्रार्थना की भगवान से कि आप कुछ कहें, हम दूर से आए हैं। बुद्ध चुप ही रहे। उन्होंने फिर से प्रार्थना की, तो फिर बुद्ध बोले। जब उन्होंने तीन बार प्रार्थना की तो बुद्ध बोले। उनकी प्रार्थना पर अंततः भगवान ने उन्हें उपदेश दिया, लेकिन वे सुने नहीं। दूर से तो आए थे, लेकिन दूर से आने का कोई सुनने का संबंध! शायद दूर से आए थे तो थके-मांदे भी थे। शायद सुनने की क्षमता ही नहीं थी। उनमें से कोई बैठे-बैठे सोने लगा और कोई जम्हाइयां लेने लगा। कोई इधर-उधर देखने लगा। शेष जो सुनते से लगते थे, वे भी सुनते से भर ही लगते थे, उनके भीतर हजार और विचार चल रहे थे। पक्षपात, पूर्वाग्रह, धारणाएं, उनके पर्दे पर पर्दे पड़े थे। उतना ही सुनते थे जितना उनके अनुकूल पड़ रहा था, उतना नहीं सुनते थे जितना अनुकूल नहीं पड़ रहा था। और बुद्धपुरुषों के पास सौ में एकाध ही बात तुम्हारे अनुकूल पड़ती है। बुद्ध कोई पंडित थोड़े ही...

Osho On Samyak Meditation - ओशो - सम्यक ध्यान के बारे में दो तीन बातें समझ लेना जरूरी है

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  सम्यक ध्यान के बारे में दो तीन बातें समझ लेना जरूरी है  सबसे पहले : आपके घर में एक छोटा सा मंदिर या एक छोटा सा कोना या एक छोटा सा ध्यान कक्ष हो तो बहुत हीं उपयोगी होगा| फिर उस स्थान का किसी अन्य ‘परपस’ के किए उपयोग नहीं होना चाहिए| क्योंकि हर काम कि अपनी एक फ्रीक्वेंसी होती हैं| उस स्थान का उपयोग सिर्फ ध्यान के लिए हो तो बहुत अच्छा होगा| रोज- रोज उसी कक्ष में ध्यान करने से वह कक्ष एक फिक्स्ड एनर्जी से चार्ज हो जाएगा| जो अगले दिन आपको ध्यान करते वक्त आप पर बरसेगा और आपके ध्यान में सहयोगी होगा| इससे बड़ी सरलता से आप ध्यान में प्रवेश कर सकते हैं| पुराने जमाने में यहीं मंदिर का उपयोग था| इस पर हिंदुओं ने बडा काम किया था| यहीं कारण है कि हर हिंदू के घर में एक मंदिर होता है| लेकिन आज तो मात्र एक औपचरिकता वस, पूजा पाठ के लिए मंदिर होता है, वह ध्यान कक्ष के साइज या शेप में नहीं होता है| दूसरी बात ध्यान के लिए : एक नियत समय आपको चुनना होगा जो आपके लिए सुविधाजनक हो| रोज-रोज आप ठीक उसी समय पर ध्यान करेंगे तो अधिक से अधिक आपको ध्यान का लाभ मिलेगा| क्योंकि हमारा शरीर और मन एक यंत्र है| जै...

बच्चों की परवरिश पर ओशो के विचार - Osho On Upbringing .

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  परवरिश और साहस बच्चा पेड़ चढ़ने की कोशिश कर रहा है; तुम क्या करोगे? तुम तत्काल डर जाओगे--हो सकता है कि वह गिर जाए, हो सकता है वह अपना पैर तोड़ ले, या कुछ गलत हो जाए। और डरकर तुम भागते हो और बच्चे को रोक लेते हो। यदि तुम्हे  पता  होता कि पेड़ पर चढ़ने में कितना आनंद आता है, तुमने बच्चे की मदद की होती ताकि बच्चा पेड़ पर चढ़ना सीख जाता। और यदि तुम डरते हो, उसकी मदद करो, जाओ और उसे सिखाओ। तुम भी उसके साथ चढ़ो। उसकी मदद करो ताकि वह गिरे नहीं। तुम्हारा डर ठीक है--यह तुम्हारे प्रेम को दर्शाता है कि हो सकता है कि बच्चा गिर जाए, लेकिन बच्चे को पेड़ पर चढ़ने से रोकना बच्चे को विकसित होने से रोकना है। पेड़ों पर चढ़ने में कुछ खास है। यदि बच्चे ने यह कभी नहीं किया है, वह किन्हीं अर्थों में गरीब रह जाएगा, वह अपने सारे जीवन के लिए कुछ समृद्धि से चूक जाएगा। तुम उसे कुछ बहुत सुंदर बात से वंचित कर रहे हो, और उसे जानने का कोई अन्य मार्ग नहीं है। इससे वंचित रह जाने से तो कभी-कभार, पेड़ पर से गिर जाना बहुत बुरा भी नहीं है।   या, बच्चा बाहर बरसात में जाना चाहता है और बरसात में गली में चारों तरफ दौड़न...

युवक और यौन Young man and sex

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जिस दिन दुनिया में सेक्‍स स्‍वीकृत होगा, जैसा कि भोजन, स्‍नान स्‍वीकृत है। उस दिन दुनिया में अश्‍लील पोस्‍टर नहीं लगेंगे। अश्‍लील किताबें नहीं छपेगी। अश्‍लील मंदिर नहीं बनेंगे। क्‍योंकि जैसे-जैसे वह स्‍वीकृति होता जाएगा। अश्‍लील पोस्‍टरों को बनाने की कोई जरूरत नहीं रहेगी। अगर किसी समाज में भोजन वर्जित कर दिया जाये, की भोजन छिपकर खाना। कोई देख न ले। अगर किसी समाज में यह हो कि भोजन करना पाप है, तो भोजन के पोस्‍टर सड़कों पर लगने लगेंगे फौरन। क्‍योंकि आदमी तब पोस्‍टरों से भी तृप्‍ति पाने की कोशिश करेगा। पोस्‍टर से तृप्‍ति तभी पायी जाती है। जब जिंदगी तृप्‍ति देना बंद कर देती है। और जिंदगी में तृप्‍ति पाने का द्वार बंद हो जाता है। वह जो इतनी अश्‍लीलता और कामुकता और सेक्सुअलिटी है, वह सारी की सारी वर्जना का अंतिम परिणाम है। मैं युवकों से कहना चाहूंगा कि तुम जिस दुनिया को बनाने में संलग्न हो, उसमें सेक्‍स को वर्जित मत करना । अन्‍यथा आदमी और भी कामुक से कामुक होता चला जाएगा। मेरी यह बात देखने में बड़ी उलटी लगेगी। अख़बार वाले और नेतागण चिल्‍ला-चिल्‍ला कर घोषणा करते है कि मैं लोगों में काम का प्र...

नए मनुष्य की धारणा

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यदि तुम पदार्थ और चेतना दोनों के साथ-साथ मालिक बन सके, तब वह एक आमंत्रण, एक चुनौती बन जाएगा और प्रत्येक उस व्यक्ति के लिए, जो तुम्हारे सम्पर्क में आता है यह एक उत्तेजना भरी यात्रा होगी। प्यारे ओशो! आप ही सच्चे विद्रोही हैं, आप ही नए मनुष्य हैं और आप ऐसे भी सद्गुरु हैं, जो हमें जन्माने के लिए दाई बनकर सहायता करते हैं, चूंकि सच्चे विद्रोह का जन्म चेतना, प्रेम और ध्यान से होता है, जैसे मानो यह एक समग्रता से जीने का रसायन है, जिसकी जरूरत हमें जाग जाने तक है। विद्रोह जंगल जैसी आग की तरह कैसे फैल सकता है? प्रश्न यह नहीं है कि यह विद्रोह जंगल जैसी आग की तरह किस तरह फैले, प्रश्न यह है कि यह लपट तुम्हें कैसे पकड़े, जिससे तुम विद्रोही बन सको। इस बात की फिक्र करो ही मत कि इस विद्रोह की लपट को विश्व कैसे पकड़े। तुम ही संसार हो। प्रत्येक वैयक्तिक रूप से संसार ही है। एक बार ऐसा हुआ, भारत के महान सम्राट अकबर ने एक बहुत सुंदर महल बनवाया। संसार की सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित हिमालय के मानसरोवर से उसने सबसे अधिक सुंदर हंस मगवाए। सबसे अधिक सुंदर सफेद और महान हंसों का जन्म उसी झील में होता है। अपने महल के उद...

समर्पण: समग्र का स्वीकार

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समर्पण से मेरा मतलब है: तुम्हारी सारी चेतन सामर्थ्य से समर्पण। इस समर्पण से धीरे-धीरे भीतर का अस्तित्व ऊपर आने लगेगा, और उसमें समाहित होने लगेगा प्रश्न: ओशो, मैं हर चीज के बारे में पूरी तरह असहाय अनुभव करता हूं—जीवन, स्वास्थ्य, ध्यान, और यहां तक कि समग्र समर्पण के लिए भी मैं असहाय अनुभव करता हूं। जो भी मैं करता हूं हमेशा अधूरा, आंशिक ही होता है। अचेतन कारण बहुत कुछ नियंत्रित करते हैं। और मेरे सारे प्रयास व अप्रयास की कोशिशें उनके सामने शक्तिहीन हैं। मुझे लगता है कि यह सब मैं आप पर छोड़ देना चाहता हूं, लेकिन वह भी वहीं तक संभव है जहां तक मैं सजग रूप से समर्थ हूं। और फिर मुझे यह भी खयाल है कि आत्यंतिक घटना इस जीवन में शायद घटे और शायद न भी घटे। और मैं यह भी आपसे नहीं पूछ सकता हूं कि यह कब घटेगी, यदि इसे मैं आप पर छोड़ता हूं। क्या मैं आप पर सब छोड़ सकता हूं यद्यपि मुझे खयाल है कि वह घटना घटने में कई-कई जीवन भी लग सकते हैं? यदि इस समर्पण से कुछ भी फलित नहीं होता तब भी क्या यह समर्पण ही है? तीन बातें: पहली, समग्र से मेरा मतलब है जो भी संभव है, मेरा मतलब संपूर्ण से नहीं है। तुम अभी संपूर्ण समर्...

प्रेम: सपना होना चाहिए और टूटना चाहिए

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जितनी जल्दी टूट जाए, उतना सौभाग्य है। क्योंकि यहां से आंखें मुक्त हों तो आंखें आकाश की तरफ उठें; बाहर से मुक्त हों तो भीतर की तरफ जाएं प्रश्न: क्या इस जगत में प्रेम का असफल होना अनिवार्य ही है? इस जगत का प्रेम तो, चैतन्य कीर्ति, असफल होगा ही। उसकी असफलता से ही उस जगत का प्रेम जन्मेगा। बीज तो टूटेगा ही, तभी तो वृक्ष का जन्म होगा। अंडा तो फूटेगा ही, तभी तो पक्षी पंख पसारेगा और उड़ेगा। इस जगत का प्रेम तो बीज है। पत्नी का प्रेम, पति का प्रेम; भाई का, बहन का, पिता का, मां का, इस जगत के सारे प्रेम बस प्रेम की शिक्षणशाला हैं। यहां से प्रेम का सूत्र सीख लो। लेकिन यहां का प्रेम सफल होने वाला नहीं है, टूटेगा ही। टूटना ही चाहिए। वही सौभाग्य है! और जब इस जगत का प्रेम टूट जाएगा, और इस जगत का प्रेम तुमने मुक्त कर लिया, इस जगत के विषय से तुम बाहर हो गए, तो वही प्रेम परमात्मा की तरफ बहना शुरू होता है। वही प्रेम भक्ति बनता है। वही प्रेम प्रार्थना बनता है। हमारी इच्छा होती है कि कभी टूटे न। कभी तिलिस्म न टूटे मेरी उम्मीदों का मेरी नजर पे यही परदाए-शराब रहे हम तो चाहते ही यही हैं कि यह परदा पड़ा रहे, टूटे ...