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॥ बच्चे को जन्म देने की प्रक्रिया पर ओशो की अंतर्दृष्टी ॥

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फ्रांस का एक मनोवैज्ञानिक मां के पेट से बच्चा पैदा होता है तो उसको एकदम से टब में रखता है--गरम पानी में, कुनकुने। और चकित हुआ है यह जान कर कि बच्चा इतना प्रफुल्लित होता है कि जिसका कोई हिसाब नहीं। तुम यह जान कर हैरान होओगे कि इस मनोवैज्ञानिक ने--उस मनोवैज्ञानिक का सहयोगी मेरा संन्यासी है, उस मनोवैज्ञानिक की बेटी मेरी संन्यासिनी है--पहली बार मनुष्य जाति के इतिहास में बच्चे पैदा किए हैं, जो रोते नहीं पैदा होते से, हंसते हैं। हजारों बच्चे पैदा करवाए हैं उसने। वह दाई का काम करता है। उसने बड़ी नई व्यवस्था की है। पहला काम कि बच्चे को पैदा होते से ही वह यह करता है कि उसे मां के पेट पर लिटा देता है, उसकी नाल नहीं काटता। साधारणतः पहला काम हम करते हैं कि बच्चे की नाल काटते हैं। वह पहले नाल नहीं काटता, वह पहने बच्चे को मां के पेट पर सुला देता है। क्योंकि वह पेट से ही अभी आया है, इतने जल्दी अभी मत तोड़ो। बाहर से भी मां के पेट पर लिटा देता है और बच्चा रोता नहीं। मां के पेट से उसका ऐसा अंतरंग संबंध है; अभी भीतर से था, अब बाहर से हुआ, मगर अभी मां से जुड़ा है। और नाल एकदम से नहीं काटता। जब तक बच्चा सांस ...