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घरमै विकास गरियो यार्सागुम्बा र ४० प्रजातिका च्याउ

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  तपाईहरूलाई पढ्दा अचम्म लाग्न सक्छ, अब यार्सागुम्बा हिमाली क्षेत्रका ठूला पाटन तथा खर्कमा मात्र होइन घरको कोठामा पनि विकास गर्न सकिने भएको छ । पोखरा पृथ्वीनारायण क्याम्पसका प्राध्यापक टिकाराम अर्यालले कोठामै यार्सागुम्बा फलाएका छन् । हिमालय च्याउ फार्ममा उनले विशेष प्रविधिमार्फत यार्सागुम्बा विकास गरेका हुन् ।  उनले घरको कोठामै नेपाली प्रविधिमार्फत यार्सागुम्बा विकास गर्न थालेको २ वर्ष भयो । विकास गरेको यार्सागुम्बा कोठाको किट (डब्बा) मा बढ्छ, माटो वा कुनै टिस्यु कल्चरमा होइन । विगत १८ वर्षदेखि विभिन्न प्रजातिका च्याउको कल्चर बैंक स्थापना गरेर नेपाली वनस्पति विज्ञान (बोटनी) मा नयाँ आयाम थपिरहेका प्राध्यापक अर्यालले नेपालमै प्रविधिको विकास गरी घरभित्रको कोठामा बहुमूल्य तथा बहुगुणी यार्सागुम्बा विकास गरेका हुन् ।  अहिले उनले किटमा विकास गरेको यार्सागुम्बा प्रतिगोटा एक हजार अथवा धेरै लिनेलाई त्यसको आधा मूल्यमा उपलब्ध गराइ रहेका छन् । अन्तर्राष्ट्रिय बजारमा यार्सागुम्बालाई अत्यन्त महँगो र महत्वका साथ लिइन्छ । विशेषतः नेपालको हिमाली जिल्ला र तिब्बतको केही स्थानमा किराको रुपमा...

युवक और यौन Young man and sex

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जिस दिन दुनिया में सेक्‍स स्‍वीकृत होगा, जैसा कि भोजन, स्‍नान स्‍वीकृत है। उस दिन दुनिया में अश्‍लील पोस्‍टर नहीं लगेंगे। अश्‍लील किताबें नहीं छपेगी। अश्‍लील मंदिर नहीं बनेंगे। क्‍योंकि जैसे-जैसे वह स्‍वीकृति होता जाएगा। अश्‍लील पोस्‍टरों को बनाने की कोई जरूरत नहीं रहेगी। अगर किसी समाज में भोजन वर्जित कर दिया जाये, की भोजन छिपकर खाना। कोई देख न ले। अगर किसी समाज में यह हो कि भोजन करना पाप है, तो भोजन के पोस्‍टर सड़कों पर लगने लगेंगे फौरन। क्‍योंकि आदमी तब पोस्‍टरों से भी तृप्‍ति पाने की कोशिश करेगा। पोस्‍टर से तृप्‍ति तभी पायी जाती है। जब जिंदगी तृप्‍ति देना बंद कर देती है। और जिंदगी में तृप्‍ति पाने का द्वार बंद हो जाता है। वह जो इतनी अश्‍लीलता और कामुकता और सेक्सुअलिटी है, वह सारी की सारी वर्जना का अंतिम परिणाम है। मैं युवकों से कहना चाहूंगा कि तुम जिस दुनिया को बनाने में संलग्न हो, उसमें सेक्‍स को वर्जित मत करना । अन्‍यथा आदमी और भी कामुक से कामुक होता चला जाएगा। मेरी यह बात देखने में बड़ी उलटी लगेगी। अख़बार वाले और नेतागण चिल्‍ला-चिल्‍ला कर घोषणा करते है कि मैं लोगों में काम का प्र...

नए मनुष्य की धारणा

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यदि तुम पदार्थ और चेतना दोनों के साथ-साथ मालिक बन सके, तब वह एक आमंत्रण, एक चुनौती बन जाएगा और प्रत्येक उस व्यक्ति के लिए, जो तुम्हारे सम्पर्क में आता है यह एक उत्तेजना भरी यात्रा होगी। प्यारे ओशो! आप ही सच्चे विद्रोही हैं, आप ही नए मनुष्य हैं और आप ऐसे भी सद्गुरु हैं, जो हमें जन्माने के लिए दाई बनकर सहायता करते हैं, चूंकि सच्चे विद्रोह का जन्म चेतना, प्रेम और ध्यान से होता है, जैसे मानो यह एक समग्रता से जीने का रसायन है, जिसकी जरूरत हमें जाग जाने तक है। विद्रोह जंगल जैसी आग की तरह कैसे फैल सकता है? प्रश्न यह नहीं है कि यह विद्रोह जंगल जैसी आग की तरह किस तरह फैले, प्रश्न यह है कि यह लपट तुम्हें कैसे पकड़े, जिससे तुम विद्रोही बन सको। इस बात की फिक्र करो ही मत कि इस विद्रोह की लपट को विश्व कैसे पकड़े। तुम ही संसार हो। प्रत्येक वैयक्तिक रूप से संसार ही है। एक बार ऐसा हुआ, भारत के महान सम्राट अकबर ने एक बहुत सुंदर महल बनवाया। संसार की सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित हिमालय के मानसरोवर से उसने सबसे अधिक सुंदर हंस मगवाए। सबसे अधिक सुंदर सफेद और महान हंसों का जन्म उसी झील में होता है। अपने महल के उद...

समर्पण: समग्र का स्वीकार

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समर्पण से मेरा मतलब है: तुम्हारी सारी चेतन सामर्थ्य से समर्पण। इस समर्पण से धीरे-धीरे भीतर का अस्तित्व ऊपर आने लगेगा, और उसमें समाहित होने लगेगा प्रश्न: ओशो, मैं हर चीज के बारे में पूरी तरह असहाय अनुभव करता हूं—जीवन, स्वास्थ्य, ध्यान, और यहां तक कि समग्र समर्पण के लिए भी मैं असहाय अनुभव करता हूं। जो भी मैं करता हूं हमेशा अधूरा, आंशिक ही होता है। अचेतन कारण बहुत कुछ नियंत्रित करते हैं। और मेरे सारे प्रयास व अप्रयास की कोशिशें उनके सामने शक्तिहीन हैं। मुझे लगता है कि यह सब मैं आप पर छोड़ देना चाहता हूं, लेकिन वह भी वहीं तक संभव है जहां तक मैं सजग रूप से समर्थ हूं। और फिर मुझे यह भी खयाल है कि आत्यंतिक घटना इस जीवन में शायद घटे और शायद न भी घटे। और मैं यह भी आपसे नहीं पूछ सकता हूं कि यह कब घटेगी, यदि इसे मैं आप पर छोड़ता हूं। क्या मैं आप पर सब छोड़ सकता हूं यद्यपि मुझे खयाल है कि वह घटना घटने में कई-कई जीवन भी लग सकते हैं? यदि इस समर्पण से कुछ भी फलित नहीं होता तब भी क्या यह समर्पण ही है? तीन बातें: पहली, समग्र से मेरा मतलब है जो भी संभव है, मेरा मतलब संपूर्ण से नहीं है। तुम अभी संपूर्ण समर्...

प्रेम: सपना होना चाहिए और टूटना चाहिए

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जितनी जल्दी टूट जाए, उतना सौभाग्य है। क्योंकि यहां से आंखें मुक्त हों तो आंखें आकाश की तरफ उठें; बाहर से मुक्त हों तो भीतर की तरफ जाएं प्रश्न: क्या इस जगत में प्रेम का असफल होना अनिवार्य ही है? इस जगत का प्रेम तो, चैतन्य कीर्ति, असफल होगा ही। उसकी असफलता से ही उस जगत का प्रेम जन्मेगा। बीज तो टूटेगा ही, तभी तो वृक्ष का जन्म होगा। अंडा तो फूटेगा ही, तभी तो पक्षी पंख पसारेगा और उड़ेगा। इस जगत का प्रेम तो बीज है। पत्नी का प्रेम, पति का प्रेम; भाई का, बहन का, पिता का, मां का, इस जगत के सारे प्रेम बस प्रेम की शिक्षणशाला हैं। यहां से प्रेम का सूत्र सीख लो। लेकिन यहां का प्रेम सफल होने वाला नहीं है, टूटेगा ही। टूटना ही चाहिए। वही सौभाग्य है! और जब इस जगत का प्रेम टूट जाएगा, और इस जगत का प्रेम तुमने मुक्त कर लिया, इस जगत के विषय से तुम बाहर हो गए, तो वही प्रेम परमात्मा की तरफ बहना शुरू होता है। वही प्रेम भक्ति बनता है। वही प्रेम प्रार्थना बनता है। हमारी इच्छा होती है कि कभी टूटे न। कभी तिलिस्म न टूटे मेरी उम्मीदों का मेरी नजर पे यही परदाए-शराब रहे हम तो चाहते ही यही हैं कि यह परदा पड़ा रहे, टूटे ...

मनुष्य की उलझनें

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जितना ही तुम शक्तिशाली होना चाहोगे उतनी ही तुम्हारी अशक्ति का तुम्हें पता चलेगा। क्योंकि जगह-जगह तुम्हारी शक्ति की सीमा आ जाएगी... इस सदी के एक बहुत बड़े मनसविद अल्फ्रेड एडलर ने मनुष्य के जीवन की सारी उलझनों का मूल स्रोत हीनता की ग्रंथि में पाया जाता है। हीनता की ग्रंथि का अर्थ है कि जीवन में तुम कहीं भी रहो, कैसे भी रहो, सदा ही मन में यह पीड़ा बनी रहती है कि कोई तुमसे आगे है, कोई तुमसे ज्यादा है, कोई तुमसे ऊपर है। और इसकी चोट पड़ती रहती है। इसकी चोट भीतर के प्राणों को घाव बना देती है। फिर तुम जीवन के आस्वाद को भोग नहीं सकते; फिर तुम सिर्फ जीवन से पीड़ित, दुखी और संत्रस्त होते हो। हीनता की ग्रंथि, इनफीरियारिटी कांप्लेक्स, अगर एक ही होती तो भी ठीक था। तो शायद कोई हम रास्ता भी बना लेते। अल्फ्रेड एडलर ने तो हीनता की ग्रंथि शब्द का प्रयोग किया है; मैं तो बहुवचन का प्रयोग करना पसंद करता हूँ हीनताओं की ग्रंथियां। क्योंकि कोई तुमसे ज्यादा सुंदर है। और किसी की वाणी में कोयल है, और तुम्हारी वाणी में नहीं। और कोई तुमसे ज्यादा लंबा है; कोई तुमसे ज्यादा स्वस्थ है। किसी के पास ज्यादा धन है; किसी के पास...

नारी का अस्तित्व कहां है?

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जब तक स्त्री अपने अस्तित्व की स्पष्ट घोषणा नहीं करती है, तब तक उसे आत्मा उपलब्ध नहीं हो सकती है, तब तक वह छाया ही रहेगी... ‘नारी और क्रांति’, इस संबंध में बोलने का सोचता हूं, तो पहले यही खयाल आता है कि नारी कहां है? नारी का कोई अस्तित्व ही नहीं है। मां का अस्तित्व है, बहन का अस्तित्व है, बेटी का अस्तित्व है, पत्नी का अस्तित्व है, नारी का कोई भी अस्तित्व नहीं है। नारी जैसा कोई व्यक्तित्व ही नहीं है। नारी की अपनी कोई अलग पहचान नहीं है। नारी का अस्तित्व उतना ही है जिस मात्रा में वह पुरुष से संबधित होती है। पुरुष का संबंध ही उसका अस्तित्व है। उसकी अपनी कोई आत्मा नहीं है। यह बहुत आश्चर्यजनक है! लेकिन यह कड़वा सत्य है कि नारी का अस्तित्व उसी मात्रा और अनुपात में होता है! जिस अनुपात से वह पुरुष से संबंधित होती है। पुरुष से संबंधित नहीं हो तो ऐसी नारी का कोई अस्तित्व नहीं है। और नारी का अस्तित्व ही न हो तो क्रांति की क्या बात करनी है? इसलिए पहली बात यह समझ लेनी जरूरी है कि नारी अब तक अपने अस्तित्व को भी-अपने अस्तित्व को-स्थापित नहीं कर पाई है। उसका अस्तित्व पुरुष के अस्तित्व में लीन है। पुरुष क...